शूल – लघुकथा
शूल
तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो क्या गम है जिसको छुपा रहे हो....
अचानक बजे इस गाने को सुनते ही अनु झूलते झूलते अचकचा कर रुक गई। गाना बदस्तूर चालू था, और उसने हल्के से नम हो आई अपनी पलकों को झट से पोंछ लिया, मानो घबरा गई हो कि कहीं कोई उसे देख ना ले। पास ही २ साल का बेटा ड्राइंग कर रहा था, यानी कागजों पर नीली पीली रेखाएं खींच रहा था।
वैसे अनु को पता था इस समय घर में कोई नही है। शुभम तो सुबह ही काम पर चले गए थे। नौकरानी भी काम कर के जा चुकी थी। भरे पूरे घर में सिर्फ सासू मां ही तो थी जिनकी तबीयत सही नही रहती थी तो वो पास ही अपने कमरे में आराम कर रही थी।
बहुत बड़ा और शानदार महल नुमा घर था अनु का। हो भी क्यों न, उसके पति शहर के जाने माने सिविल कांट्रेक्टर जो थे। इकलौती संतान और फैला हुआ कारोबार।
कोई कमी नहीं थी किसी भी प्रकार की। मां जैसे ही प्यार करने वाली सास, अगाध प्रेम करने वाला पति, और चांद सा बेटा और दुनिया के सब ऐश के साधन मुहैया थे।
दरवाजे पर हर समय कार खड़ी रहती ड्राइवर के साथ और शुभम ने अपना कार्ड अनु को दे रखा था, जब मन करे जो मन करे करो, बाजार जाओ, शॉपिंग करो, पार्टी करो या कुछ और। कुल मिला कर सुखी संसार है अपनी अनु का।
फिर भी एक शूल है जो समय समय पर टीस दे जाता है।
अनु देखने में बहुत खूबसूरत किसी गुड़िया सी लगती है, बड़ी बड़ी आंखें, लंबे घने बाल, सुंदर गोरा रंग, और सुंदर व्यक्तिव की मालकिन अनु। गाती बहुत बढ़िया है, बोलती है तो मानो कोयल, मधुर खनकती हंसी, जो किसी का भी मन मोह ले।
सोचते सोचते एक मुस्कान अनु के चेहरे पर आ गई। कितना मीठा गाता था न, वो, और इसके साथ ही अनु कहीं दूर बहुत दूर निकल गई।
अभी 12 वी का रिजल्ट आया ही था, आशा के अनुरूप उसने अच्छे नंबरों से एग्जाम पास कर लिया था। अब आगे की तैयारी थी, अनु अपने पापा की लाडली बड़ी बेटी, जिन्होंने उसे कभी बेटी माना ही नही। वो तो उनका बड़ा होनहार बेटा थी। वो जो भी कहती पापा मान लेते, इसी बात पर मां बार बार झुंझलाती। कहती देखो तुम बेटी को बिगाड़ रहे हो, कल पराए घर जायेगी तो आपकी ही नाक कटेगी।
पापा जोर से हंसते, और कहते तुम नकटे के साथ रह लोगी, और पूरा घर ठहाकों से गूंज जाता।
आज अनु का कॉलेज में पहला दिन था, गुलाबी सूट में अनु किसी राजकुमारी जैसी लग रही थी। मां ने प्यार से दही चीनी खिलाई थी और कान के पीछे काला टीका भी लगा दिया था। पापा ने ऑफिस से छुट्टी ली थी, खास तौर पर अनु को कॉलेज छोड़ के आने के लिए।
कॉलेज का माहौल ही अलग था मानो रंगों का मेला लगा था, हर तरफ उत्साह और उमंग और जवान लोगों की भीड़।
पापा ने गेट पर उतारा और बोले बेटा फोन कर देना लेने आ जाऊंगा। नही नही पापा, उसकी जरूरत नही, अभी ममता और वर्षा मिल जायेंगी और हम तीनो वापस इक्कठे ही आ जायेंगे। वर्षा और ममता, अनु के स्कूल की सहेलियां। पापा बोले अच्छा कुछ पैसे रख ले वापसी ऑटो से ही आना। पैसे देकर पापा निकल गए।
अनु जैसे ही कॉलेज के अंदर जाने के लिए घूमी, सामने से आती एक मोटरसाइकिल से टकरा गई। वैसे तो स्पीड ज्यादा नही थी पर अचानक हुई टक्कर से अनु गिर पड़ी, और इधर मोटरसाइकिल भी अपना संतुलन खो बैठी और उस पर बैठा हुआ शख्स भी गिर पड़ा।अनु जल्दी से उठी और उसकी तरफ बढ़ी, उसे मालूम था गलती उसकी ही है तो वो लगातार सॉरी सॉरी कहती हुई उसको उठाने की मंशा से अपना हाथ आगे कर बैठी। उसने भी तपाक से अनु का हाथ थाम लिया और खड़ा हो गया।
हेलमेट के अंदर से एक बेहद सजीला नौजवान अनु की आंखों में आंखें डाल रहा था, दोनो के हाथ अभी भी एक दूसरे से जुड़े हुए ही थे।दोनो एक दूसरे को सॉरी सॉरी बोलते जा रहे थे पर एक दूसरे को एकटक निहार रहे थे, ना जाने कितने पल दोनो दीन दुनिया से बेखबर यूं ही खड़े रहे। यहां तक कि रास्ते पर पड़ी मोटरसाइकिल भी उठाने की नही सूझी।
अचानक ममता की खिलखिलाती आवाज ने अनु का ध्यान तोड़ा, अब क्या शाम तक हाथ ही मिलाती रहोगी। भैया ये अनु है मेरी क्लासमेट और अनु ये रोहन भैया हैं मेरे चचेरे भाई। कॉलेज में हमारे सीनियर।
दोनो ने हड़बड़ा कर अपने अपने हाथ खींच लिए। रोहन अपनी झेंप मिटाने के लिए अपनी मोटरसाइकिल उठाने चल दिया और अनु भी जमीन को देखने लगी।
पहली मुलाकात में ही दोनो को कुछ कुछ महसूस होने लगा।
ममता फिर बोली, भैया, मेरी सहेली को गिरा दिया आपने अब कुछ जुर्माना तो देना ही होगा।
हां हां बोलो क्या जुर्माना, रोहन तपाक से बोला।
एक एक कोल्ड ड्रिंक, है ना अनु, ममता बोली
अरे नही नही अभी तो क्लास अटेंड करनी है ना, अनु ने झेपते हुए कहा। झट से वर्षा बोली, आज क्लास नही है, तुमने नोटिस नही पढ़ा, आज सिर्फ फीस जमा हो रही है, क्लास अगले हफ्ते से होगी।
तो सही है, रोहन बोला, मेरी भी क्लास नही है, चलो आप सबको कोल्डड्रिंक पिलवाते हैं। तुम लोग कैंटीन पहुंचो मैं बाइक खड़ी कर के आता हूं। ये कह कर वो बाइक खड़ी करने चला गया।
कमाल है यार अनु, तुमने तो घुसते ही बाजी मार ली, ममता बोली, रोहन भैया तो लड़कियों से बात करना पसंद ही नही करते, और वो हैं भी स्पोर्ट्स में कॉलेज के हीरो और पढ़ाई में भी आगे। लगता है हमेशा की तरह तुम यहां भी अव्वल ही रहोगी। अनु बस चुपचाप मुस्कुराते हुए अपनी सहेलियों को सुन रही थी। कहीं न कहीं उसके मन में एक हलचल मची हुई थी, रोहन को देख कर। एक अजीब सी कशिश थी उसकी गहरी आंखों में और उसके हाथ का स्पर्श सिरहन सी दौड़ा रहा था।
रोहन से हुई पहली मुलाकात कब गहरी दोस्ती में बदल गई पता ही न चला।
अब तो वो रोज सुबह का इंतजार करती जब वो कॉलेज पहुंचती तो रोहन रोज उसी जगह उसको मिल जाता और फिर मानो दिन पंख लगा कर उड़ जाता। दोनो कॉलेज के बाद लाइब्रेरी या फिर किसी पार्क में चले जाते और घंटों एक दूसरे से बातें करते।वक्त पंख लगा कर उड़ रहा था, और पलक झपकते ही साल गुजर गया। अनु ने अपनी कक्षा में टॉप किया था वहीं रोहन ने भी। और अब वो आगे की पढ़ाई के लिए बाहर जाने वाला था।
अनु बहुत रोई थी उस रात, उसे कुछ भी अच्छा नही लग रहा था। कल सुबह हो रोहन ट्रेन पकड़ कर दिल्ली जाने वाला था। रोते रोते कब उसकी आंख लग गई पता ही ना चला। सुबह उठी तो मन काफी हल्का था। नहा धो कर सीधा स्टेशन पहुंची, रोहन बेसब्री से उसका इंतजार कर रहा था। उसका भी जाने का मन नहीं था, पर जाना तो था। ट्रेन चलते तक रोहन प्लेटफॉर्म पर अनु का हाथ थामे खड़ा था, उसने वादा किया कि वो रोज उसे याद करेगा और रोज शाम को बात भी, फिर वो ट्रेन पर चढ़ गया और ट्रेन ने रफ्तार पकड़ ली।
अनु भी बुझे मन से वापस लौट पड़ी। बस सिलसिला यूंही चलता रहा। प्यार के वादे होते रहे, बातें होती रहीं। रोहन को जब भी मौका मिलता वो आता और हर बार अनु से कहता, अनु मेरा इंतजार करना। धीरे धीरे दिन, महीने और साल गुजरने लगे। अनु अब फाइनल ईयर में आ चुकी थी, उधर रोहन भी अपनी MBA पूरी करने ही वाला था।
अब अनु सीधा घर से कॉलेज और वापस घर आती और पूरा ध्यान पढ़ाई में ही लगा रही थी।
एक ही उम्मीद, जल्दी ही रोहन जॉब कर ले तो आ कर पापा से उसका हाथ मांग ले। रोहन भी तो यही चाहता था।
पर शायद नियति को कुछ और ही मंजूर था।
अचानक एक दिन पापा को ऑफिस में ही दिल का दौरा पड़ा। आनन फानन में उनको हॉस्पिटल भर्ती कर दिया। ओपन हार्ट सर्जरी करनी पड़ी। पापा घर तो लौट आए पर अब बहुत शांत धीर गंभीर। अब घर में एक सन्नाटा सा पसरा रहता था। डॉक्टर की हिदायत थी पापा को किसी भी सदमे से बचा कर रखना था।
पापा ने शीघ्र ही ऑफिस ज्वाइन कर लिया, फिर एक दिन शाम अनु कॉलेज से घर लौट कर आई तो देखा घर में थोड़ा गहमा गहमी का माहौल है। मां पकोड़े, हलवा, पूरी, छोले और न जाने क्या क्या पकवान बना रही थी। पापा भी घर जल्दी आ गए थे।
तनु ने बताया दीदी कोई आपको देखने आ रहा है।
मां ने कहा, बेटा जल्दी से साड़ी पहन कर तैयार हो जाओ, वो लोग बस आने ही वाले हैं। तनु दीदी की हेल्प कर बेटा और फिर किचन में आ कर मेरा हाथ बंटा, कितना काम पड़ा है अभी और थोड़ी देर में मेहमान आ जायेंगे।आप अखबार लेकर बैठे हो, थोड़ा ड्राइंग रूम को सही कर दो, ये कुशन कवर ही बदल दो, मां सबको निर्देश दिए जा रही थी।
अनु चुपचाप अपने कमरे में गई और यंत्रवत सी हाथ मुंह धो कर कपड़े बदलने लगी, सोच रही थी मौका मिलेगा तो पापा से बात करेगी, हर बार पापा उसकी मर्जी पूछ लेते थे, आज उन्होंने भी नही पूछा। शायद भूल गए होंगे, वो कहेगी तो मान ही जायेंगे। रोहन में कोई कमी है भी तो नही।
शाम 5 बजे एक गाड़ी घर के बाहर आ कर रुकी। ड्राइवर ने गेट खोला और एक संभ्रांत महिला और उनका बेटा कार से उतरे, उन्हें देखते ही मां और पापा ने उनका स्वागत किया और अंदर ले आए।
अनु चाय की ट्रे लेकर आई और तनु ने नाश्ता सजा दिया। अनु मां के पास सिर झुकाए बैठी थी, उसने कनखियों से शुभम की तरफ देखा तो पाया वो उसी की ओर देख रहा था, अनु ने घबरा के नजरें झुका ली।
शुभम ने धीरे से अपनी मां के कान में कुछ कहा और उन्होंने मां को कुछ इशारा किया। मां ने पापा को इशारा कर के बुलाया और दोनो ने दबी जुबान में कुछ बात की। फिर पापा शुभम की मां को संबोधित होकर बोले, तो कहिए आपका क्या विचार हैं।
इस पर वो बोली लड़के को लड़की पसंद है, हम रोके का सामान साथ लाए हैं अगर इजाजत हो तो रस्म कर लें।
मां और पापा के चेहरे खुशी से दमक उठे।
शुभम की मां अपनी जगह से उठी और अनु का माथा चूम कर बोली, भाई साहब आज से अनु हमारी।
उसके बाद की बातें अनु को मानो याद ही नहीं, वो तो यंत्रवत जैसा कहा जा रहा था करती जा रही थी। सब लोग बहुत खुश थे, किसी ने उसकी आंखों की कोर से छलकते मोती नही देखे।
फाइनल ईयर के एग्जाम आने ही वाले थे, उस रात उसने एग्जाम का बहाना बना कर रोहन को कह दिया अब कुछ दिन मेसेज न करे न ही कॉल।
और कुछ दिन बाद ही अनु की शादी शुभम से हो गई।
बस एक शूल दिल में गहरे गड़ा रहा, कि वो रोहन को भी न कुछ कह पाई न ही कभी पापा को..... मां, मां....
बेटे की आवाज ने उसकी तंद्रा भंग कर दी, और कल की कमसिन अल्हड़ अनु अब मां का फर्ज निभाने को उठ चली।
आभार – नवीन पहल – २०.०२.२०२१२🙏🌹👍😀
# लेखनी वार्षिक कहानी
𝐆𝐞𝐞𝐭𝐚 𝐠𝐞𝐞𝐭 gт
02-Mar-2022 04:12 PM
वाओ सर! बहुत ही शानदार स्टोरी है। दिल को छू जाने वाली👌👌
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देविका रॉय
01-Mar-2022 12:27 PM
बहुत खूब
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सिया पंडित
24-Feb-2022 06:21 PM
बेहतरीन
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